ट्रेडिंग की अनुमति, NSE ने भविष्य में फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस सेगमेंट के लिए ट्रेडिंग का समय बढ़ाने की योजना बनाई है। इसके लिए NSE ने सुरक्षा और विनियामक बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) से अनुमति मांगी है।
NSE के चीफ बिजनेस डेवलपमेंट ऑफिसर श्रीराम कृष्णन ने बताया कि SEBI ने कुछ सवाल पूछे हैं और उन्हें हल करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि बाजार के समय को कैसे बढ़ाया जाएगा, उसमें कुछ सवाल हैं, और वे इस पर काम कर रहे हैं।
ट्रेडिंग की मांगी अनुमति शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक
नौ बरे तक की समय सीमा में ट्रेडिंग की अनुमति मिलने पर NSE ने SEBI से इस तरह की इजाजत मांगी है कि शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक के ट्रेडिंग सेशन का आयोजन किया जा सके। कृष्णन ने बताया कि यह नई योजना सही दिशा में है और उम्मीद है कि SEBI के सवालों का उत्तर मिलने के बाद उन्हें मंजूरी मिलेगी और यह प्रस्तुत की जाएगी।
साथ ही, NSE ने इक्विटी डेरिवेटिव्स सेगमेंट के लिए नए कॉन्ट्रैक्ट्स को भी लॉन्च करने की तैयारी की है और इसके लिए मंजूरी का इंतजार है।
कृष्णन ने यह भी बताया कि वह वर्तमान में SEBI की द्वारा चयन के लिए योग्य कमोडिटी की सूची की जांच कर रहे हैं और वह आने वाले दिनों में कुछ कमोडिटी कॉन्ट्रैक्ट्स को
NSE ने ट्रेडिंग समय बढ़ाने का प्रस्ताव भेजा
NSE ने ट्रेडिंग समय बढ़ाने का प्रस्ताव भेजा है और इसका क्या मतलब है। एनएसई के चीफ बिजनेस डेवलपमेंट ऑफिसर ने सीएनबीसी टीवी18 को बताया कि एनएसई ने मार्केट रेगुलेटर SEBI को यह प्रस्ताव भेजा है।
इस प्रस्ताव का मुख्य हिस्सा है इंडेक्स फ्यूचर्स में समय बढ़ाना। इससे संकेत मिल रहा है कि इंडेक्स और फ्यूचर्स में ट्रेडिंग का समय बढ़ सकता है। इसके अलावा, एक विचार है कि शाम को एक अलग ट्रेडिंग सेशन का आयोजन किया जा सकता है, जिसका समय शाम 6 से 9 बजे तक हो सकता है। स्टॉक फ्यूचर्स और ऑप्शन्स (F&O) पर इसका पूर्वानुमान बाद में होगा।
मौजूदा समय में, सोमवार से शुक्रवार को शेयर बाजार सुबह 9 बजे खुलता है और पहले 15 मिनट प्री-मार्केट ट्रेड होता है, जिसमें सौदे सेटल होते हैं। इसके बाद सुबह 9:15 मिनट पर बाजार में कारोबार शुरू हो जाता है, और शाम 3:30 बजे मार्केट बंद होता है।
हालांकि, कुछ ब्रोकर्स इसे गलत बता रहे हैं और कह रहे हैं कि एनएसई के शाम के कारोबार को बढ़ाने का निर्णय सही नहीं है। उनका कहना है कि इससे ट्रेडिंग वॉल्यूम को बढ़ाने में मदद नहीं होगी, बल्कि इससे लागत बढ़ेगी और कर्मचारियों में असंतोष हो सकता है।